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दोस्तों मेरा नाम सुहानी है… और मैं आज अपनी पहली चुदाई की सच्ची कहानी सुनाने जा रही हूँ।
लड़कियाँ अपनी चूत संभाल लें… और लड़के अपना लंड कस के पकड़ लें — क्योंकि ये सिर्फ एक कहानी नहीं, एक अनुभव है… जो दिल और शरीर दोनों को झकझोर देगा।
ये उन दिनों की बात है जब मैं कॉलेज के हॉस्टल में रहती थी। बीस साल की थी, पर मेरी कामुक इच्छाएँ जैसे हर दिन और तेज़ होती जा रही थीं।
मैं दिन में पढ़ाई करती थी, लेकिन रात में — बिस्तर पर लेटकर कहानियाँ पढ़ती थी।
‘मास्टर जी ने चूसा’, ‘मामी की गीली चूत’, ‘छुप छुप के चुदाई’ — ऐसी कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते मेरी चूत भीग जाती थी।
मैं धीरे से अपनी उंगलियाँ पैंटी के अंदर ले जाती, और जैसे-जैसे कहानी बढ़ती — मैं भी अपने अंदर और गहराई तक उतर जाती।
मेरे हॉस्टल में एक लड़का आता-जाता था — अर्जुन। मेरा क्लासमेट और दोस्त।
वो सीधा-साधा दिखता था, लेकिन उसकी आँखें… हर बार मेरे सीने या कमर पर ही अटक जाती थीं।
मैंने कई बार नोटिस किया था — जब मैं झुकती थी, तो उसकी साँसें तेज़ हो जाती थीं।
एक रात की बात है। हॉस्टल में लाइट चली गई थी। सब अपनी-अपनी बैड पे पड़े थे।
मैं बाथरूम से नहा के आई थी — गीले बाल, भीगा हुआ बदन, और सिर्फ एक छोटा सा टॉवेल लपेटा हुआ।
जैसे ही मैं अपने रूम की ओर मुड़ी — सामने अर्जुन खड़ा था।
"अरे तू?" मैंने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा।
उसने बस मेरी आँखों में देखा… फिर धीरे से नीचे — मेरी भीगी हुई चूचियों की ओर।
उसकी नज़रें मेरे बदन से टकराईं… और मेरी चूत में एक सिहरन सी दौड़ गई।
मैंने टॉवेल और कस के पकड़ा, लेकिन उसने धीरे से मेरा हाथ पकड़ लिया।
"तू चाहती है न?" उसने फुसफुसाकर पूछा।
मैंने कुछ नहीं कहा। बस उसकी आँखों में देखा… और अपनी उंगलियाँ उसकी उंगलियों में फंसा दीं।
वो धीरे-धीरे मुझे कमरे में ले गया…
कमरे की हल्की अंधेरी रौशनी में… उसने मेरे टॉवेल को साइड किया।
मेरे बदन पर पहली बार किसी लड़के का हाथ फिरा था… और मैं काँप गई थी।
उसने मेरे चूचुकों को अपने हथेलियों में भर लिया — गरम, कसाव से भरे हुए चूचुक…
जैसे किसी भूखे ने पहली बार छूए हों।
"तेरे चूचियाँ… इतनी मुलायम हैं, और इतनी कसी हुई," वो बुदबुदाया।
उसकी उंगलियाँ मेरे नाभि के नीचे फिसलती चली गईं… और मैं साँस रोक के खड़ी रही।
जब उसने मेरी पैंटी खींची — मेरी चूत, जो पहले से ही गीली थी, खुल कर उसकी साँसों में घुल गई।
"इतनी भीगी क्यों है सुहानी?" उसने पूछा…
"तू ही तो वजह है…" मैंने पहली बार अपनी कामुकता को शब्दों में ढाला।
उसका लंड गरम था, मोटा था, और धीरे-धीरे उसकी पकड़ में सख्त होता जा रहा था।
मैंने उसका पायजामा नीचे किया — और पहली बार किसी का लंड देखा… मेरे सामने, मेरे लिए।
मैंने उसे पकड़ा… और पहली बार कोई चीज़ इतनी असली लगी।
उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया, और मेरी टांगों को धीरे-धीरे खोला…
उसकी उंगलियाँ पहले मेरी चूत के आस-पास घूमें…
फिर उसने मेरी फांकों को धीरे से खोला — और अपना लंड मेरी गीली, गरम, तड़पती हुई चूत के बिलकुल करीब लाया।
"अंदर डाल दूँ?" — उसने आखिरी बार पूछा।
मैंने सिर हिलाया… और एक गहरी साँस ली।
जब उसका लंड मेरी चूत में पहली बार उतरा… मेरी आँखें भीग गईं —
न दर्द पूरा था, न सुकून अधूरा…
बस एक एहसास था — कि अब मैं अकेली नहीं रही, अब मेरे अंदर कोई साँस ले रहा है…
वो लम्हा ऐसा था जैसे मेरी पूरी देह खुल रही थी —
हर परत, हर तह, हर एहसास…
उसके लंड की हर घुसपैठ मेरे अंदर कुछ तोड़ भी रही थी… और कुछ नया जोड़ भी रही थी।
उसने कोई जल्दी नहीं की…
हर धक्का सलीके से, हर घिसाव महसूस करके…
पहले धीरे… फिर थोड़ा़ और…
जैसे मेरी चूत से नहीं, मेरी आत्मा से प्यार कर रहा हो।
जब उसके लंड की मोटाई मेरे अंदर पूरी समा गई —
मेरे चूचियाँ खुद उसके सीने से टकरा रहीं थीं, और मेरी जाँघें खुद खुलने लगी थीं…
मेरे शरीर ने जैसे खुद कह दिया हो — "हाँ, अब और… और गहराई तक…"
उसने मुझे अलग-अलग अंदाज़ में चोदा उस रात —
कभी मेरे ऊपर आकर, कभी मुझे पलटा कर…
कभी मेरी कमर पकड़ के पीछे से, तो कभी मेरी टाँगें अपने कंधों पर रखकर।
हर बार… मेरी चूत कुछ और खोलती गई…
हर बार… मेरा मन, मेरा बदन, मेरा रोम-रोम — उसकी हर थाप पर जवाब देने लगा।
उसने मुझे उस रात तीन बार चरमसुख तक पहुँचाया —
और मैं… हर बार कुछ और उसकी हो गई।
वो मेरी पहली चुदाई थी — पर मेरी आखिरी मासूमियत भी।
क्योंकि उस रात सिर्फ मेरा बदन नहीं चूसा गया…
मेरे भीतर की हर दबी हुई भावना, हर दबा हुआ सपना — अब खुलकर सांस लेने लगा था।
और ये तो सिर्फ शुरुआत थी…
पार्ट - २ में - जब अर्जुन ने मुझे बाथरूम में शीशे के सामने खड़े खड़े चोदा