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Real Indian Lund Chut ki Kahaniya

रिश्तेदारों की भीड़ में बहन की चुपचाप चुदाई… रजाई के अंदर

✍️ लेखक: sunny.saxena | 👁️‍🗨️ Views: 1394 | 🗂️ श्रेणियाँ: Taboo , public sex , desi romance

मम्मी का कॉल आया — “मामा की बेटी की शादी है, चल गांव चल रहे हैं।” पहले तो टालने का मन किया, लेकिन फिर सोचा — गांव का माहौल, शादी का खाना, रात में ठंडी हवा, और सबसे जरूरी — शादी में आई हुई लड़कियाँ… कुर्ता-पायजामा पहनकर मस्त चाल में घूमेंगे और vibe लेंगे।

गांव पहुंचे तो घर भरा पड़ा था — आँगन, बारामदा, छत तक रिश्तेदार ही रिश्तेदार। लड़की वाले, लड़के वाले, कुछ ससुराल से, कुछ ननिहाल से — और कई तो ऐसे कि खुद को भी ठीक से पता नहीं किसके क्या लगते हैं।

शाम को हल्दी थी। Lawn में हल्की पीली रौशनी थी, DJ का सेटअप आधा टेढ़ा था, और हर तरफ हँसी-ठिठोली का माहौल चल रहा था।

मैं प्लेट लेकर एक कोने में जा ही रहा था कि सामने से वो आई — काले सूट में, बाल खुले हुए, हाथ में फोन, और हँसी थोड़ी ज़्यादा तेज़… जैसे किसी बात पर fake हँसी मार रही हो — लेकिन वही हँसी मुझे सीधा खींच लाई।

मेरी नज़र सबसे पहले उसके चेहरे पर टिकी… फिर गर्दन, फिर सीधा सीने पर। दुपट्टा हल्का टेढ़ा था — और उसके नीचे जो झलक रही थी, वो किसी भी लड़के को एक सेकंड रुक कर scan मारने को मजबूर कर देती।

फिर मैं नीचे आया — उसकी कमर, उसकी फिट सलवार, और वो जरा-जरा सी टाइट जांघें… सब आंखें चुरा-चुरा के देख लीं।

मैंने धीरे से दोस्त के कान में कहा — “भाई... ये जो काली सूट वाली है, साइड से दिख रही ना… इसका कुछ कर सकते हैं क्या?”

वो हँसा — “तू पहले उससे मिल तो ले… हो सकता है तेरी बहन निकले।” मैंने उस वक्त बात को हँसी में उड़ा दिया… पर जो असली झटका था — वो थोड़ी देर बाद लगने वाला था।

रात को जब मम्मी ने मिलवाया तो बोली — “ये निशा है बेटा, मामी की मामी के चाचा की पोती… दूर की बहन जैसी समझ।”

मैंने मुस्कुरा के “हाय” कहा… लेकिन दिल में कुछ और ही चल रहा था। क्योंकि उस शाम जब मैंने उसे देखा था — वो किसी भी angle से बहन जैसी नहीं लगी थी।

काले सूट के नीचे से उसकी सफेद ब्रा की पट्टी हर बार झलक रही थी, जब वो हँसती थी या थोड़ा झुकती थी। उसके सीने की हर हरकत सीधा मेरी नजर से टकरा रही थी — और मैं चाहकर भी नज़रें नहीं हटा पा रहा था।

शादी के पहले दिन से ही connection बनने लगा था। हम दोनों ने साथ खाना खाया, घूमते हुए बातें कीं, और संगीत की रात को एक साथ डांस भी किया। वो बोलती कम थी, लेकिन आँखों में शरारत थी — और वो शरारत मुझे सीधे खींच रही थी।

मेहंदी की रात थी — घर में हर कोना लोगों से भरा हुआ, कुछ लोग गाने गाते हुए थक गए थे, कुछ दादी-नानी टाइप की औरतें चाय पीकर सो चुकी थीं। रात के करीब दो बज चुके थे — अब बस खटखटाते खर्राटे और मद्धम आवाजें बची थीं।

मैं टेंट के कोने में अपनी rajai लेकर लेटा था — माहौल शांत था, और मैं बस आँखें बंद किए लेटा था, जब...

अचानक किसी के कदमों की आवाज़ टेंट के पास आई — मैंने आंखें खोलीं तो देखा… *Nisha थी।*

हल्के से बोली — “सब जगह सो चुके हैं… कमरे में तो पैर रखने की भी जगह नहीं।”

फिर झिझकते हुए बोली — “राजाई दे दे एक? मम्मी ने कहा था तुझसे ले लूं अगर बचे तो…” मैंने एक extra rajai उसकी तरफ बढ़ा दी। लेकिन उसने उसे हाथ में ही थामा रखा… और थोड़ी देर बाद बोली — “वैसे अगर तू बुरा ना माने… तो मैं तेरे पास ही लेट जाऊं? इतनी रात को सब कुछ खिसकाना भी awkward लगेगा…”

मैंने हल्का मुस्कुराकर साइड में थोड़ा खिसकते हुए कहा — “राजाई बाँटना कोई बुरी बात नहीं… बस पैर ठंडे मत रखना।”

वो हँसी… और चुपचाप मेरी बगल में लेट गई। हमने आधी-आधी rajai ओढ़ ली — बाहर हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और अंदर रजाई के नीचे दो बदन धीरे-धीरे करीब आ रहे थे।

कुछ देर खामोशी रही… फिर उसकी कुहनी मेरी बाजू से टकराई। मैं थोड़ा चौंका — उसने धीमे से कहा, “Sorry…” लेकिन हाथ वहीं रहने दिया।

हम दोनों लेटे थे — एक ही रजाई में, एक ही साँस में… और रात अब बहुत लंबी लग रही थी।

कुछ देर बाद वो खुद rajai में और नज़दीक आ गई — पैर उसके मेरे पैरों से चिपके हुए थे। उसकी साँसें मेरी गर्दन से टकरा रही थीं।

मैंने धीरे से हाथ बढ़ाया और उसकी उंगलियों को छुआ — वो पीछे नहीं हटी। मैंने उसकी हथेली पकड़ी, और उसकी कमर तक सरकाया।

उसका बदन गर्म था… और वो कुछ नहीं कह रही थी। फिर मेरी हथेली उसकी कमर से नीचे गई — उसके पेट पर। उसके पेट की थरथराहट से लग रहा था कि वो कुछ सोच रही थी… पर मना नहीं कर रही थी।

मैंने धीरे से उसकी सलवार में हाथ डाला — उसका शरीर थोड़ा सख्त हुआ, पर उसने कुछ नहीं कहा।

उसकी चूत नरम और गरम थी — पूरी गीली नहीं, लेकिन जैसे अभी तैयार हो रही हो।

मैंने उंगलियाँ धीरे-धीरे घुमाईं — तब उसने पहली बार मेरी उंगलियाँ पकड़ीं, हल्का सा मुस्काई — और बस कहा… “ध्यान रखना…”

मैंने धीरे से अपनी पायजामा नीचे की, उसका बदन मेरी तरफ किया और राजाई के अंदर धीरे से अपना लंड उसके अंदर डाल दिया — धीरे… एकदम ध्यान से।

उसने मेरी गर्दन पकड़ ली — जैसे झटका न लगे। आवाज़ बिलकुल नहीं… बस उसकी गर्मी, उसका बदन और उसकी साँसें राजाई के अंदर तेज़ हो रही थीं।

मैंने अभी बस दो हल्के से झटके ही मारे थे कि टेंट के बाहर किसी की हल्की सी चप्पल की आवाज़ सुनाई दी। हम दोनों के शरीर रुक गए… मेरी लंड अब भी उसकी चूत में था, लेकिन जैसे बदन ठंडा पड़ गया हो।

“रजाई कहीं दिखी क्या? एक और लानी थी…” — किसी की धीमी फुसफुसाती आवाज़ टेंट के पास से आई।

वो शायद किसी और को ढूंढ रहा था, या कोई चीज़… लेकिन हमारी राजाई की ओर बढ़ते कदम सुनकर मेरी सांसे तेज़ हो गईं। Nisha एकदम मेरी छाती में सिमट गई — मुँह तक बाहर नहीं निकाला, बस अपनी टाँगें और टाइट कर लीं।

आस-पास के लड़के खर्राटे मार रहे थे — कोई करवट बदल रहा था, कोई गहरी नींद में था।

मैंने हल्के गुस्से में आँखें बंद रखते हुए आवाज़ दबाकर कहा — “यहाँ सो रहे हैं सब… जाओ, बाहर देख लो।”

कदम रुक गए… फिर एक धीमी बुदबुदाहट… “हां ठीक है।” और वो वापस चला गया — लेकिन मेरे सीने की धड़कन तब तक थमी नहीं थी।

राजाई के अंदर हल्की गर्मी थी… लेकिन अब दोनों के बदन में फिर से वो **रात वाली आग** जलने लगी थी। मैंने उसकी आँखों में देखा — इस बार उसमें डर नहीं, सिर्फ **प्यास** थी।

“अब कोई नहीं आएगा…” मैंने कहा और कमर को एक ही झटके में नीचे धकेला — पूरा लंड उसकी चूत के अंदर तक चला गया, और उसने इस बार मेरी पीठ को दोनों हाथों से कसकर जकड़ लिया।

वो एकदम कांप गई — मुँह मेरे सीने में दबा लिया, लेकिन उसकी करवटें बता रही थीं कि अब रोकने का सवाल नहीं।

मैंने तेजी से झटके मारने शुरू कर दिए — रजाई के अंदर हमारी हलचल साफ़ महसूस हो रही थी, लेकिन आवाज़… अब भी नहीं। बस उसकी साँसें, मेरी पकड़, और चूत के अंदर होती मेरी गहराई — सब राज़ बन चुके थे।

मैं अब थमने वाला नहीं था — उसका शरीर कस के पकड़ा, जाँघें फाड़ दीं, और पूरा लंड उसकी चूत में धँसा दिया।

उसने हल्की कराह के साथ मेरी पीठ पकड़ ली — जैसे कह रही हो, “और करो… आज के लिए, मैं तेरी हूं पूरी।”

मैंने उसकी गर्दन को चूमा, उसके निप्पल को हल्के से चूस लिया — वो काँप उठी, और अपनी टाँगें मेरी कमर के चारों तरफ लपेट ली।

राजाई के अंदर पसीना टपक रहा था — उसकी छाती मेरे सीने से चिपकी थी, उसकी चूत में मेरा लंड अब थरथरा रहा था… और मैं रुकने वाला नहीं था।

मैंने झटकों की रफ्तार बढ़ा दी — अब आवाजें हल्की थीं, लेकिन उसकी साँसें मेरे कान में गर्मी छोड़ रही थीं।

“अंदर छोड़ दूं?” मैंने फुसफुसाया।

उसने सिर हिलाया — “हाँ… मुझे पूरा चाहिए… आज के बाद चाहे जो भी हो।”

मैंने अपनी कमर दबाई और पूरा रस उसकी चूत में उतार दिया — वो बस काँपी… और फिर मेरी छाती में मुँह छुपाकर सुबकने लगी।

मैंने उसे गले से कसकर लगाया — उसके बालों को चूमा और कहा, “कुछ नहीं होगा… तू मेरी है।”

हम दोनों वहीं, वैसे ही लेटे रहे — मेरा लंड अभी भी उसकी चूत में था… धीमे-धीमे ढीला होता, लेकिन गर्मी अब भी अंदर थी।

हम चुपचाप लेटे थे — उसका सिर मेरी छाती पर, मेरी उंगलियाँ उसकी जांघों पर। रजाई के अंदर सब कुछ हो चुका था — फिर भी जैसे कुछ बाकी था… कुछ अधूरा।

मैंने उसकी ठोड़ी उठाई, उसकी आँखों में देखा — वो कुछ नहीं बोली, लेकिन हल्के से अपनी जाँघें और फैला दीं।

मैं नीचे गया, रजाई के अंदर — और उसकी चूत के पास अपना मुँह ले गया। वो अब भी गीली थी, गरम थी… और मेरी थी।

मैंने धीरे से उसकी चूत चाटनी शुरू की — बिना आवाज़ किए, बस उसकी साँसों से उसकी तृप्ति समझ रहा था। उसने मेरी बालों में उंगलियाँ डालीं… जैसे कह रही हो — “थोड़ा और… बस आज के लिए।”

फिर वो धीरे से ऊपर उठी, मेरी तरफ झुकी — और मेरा लंड अपने हाथ में लिया। कोई शब्द नहीं, कोई इशारा नहीं — बस नज़रों में वही मौन इज़हार था।

उसने धीरे-धीरे अपना मुँह नीचे किया… और मेरे लंड को होठों में ले लिया। एक-एक चूस में जैसे मेरी सारी थकान खींच रही थी… मेरी रूह तक उतर रही थी।

मैंने उसकी गर्दन पकड़ ली… पर उसने खुद को और झुकाया — जैसे कह रही हो, “आज सब कुछ तेरा है…”

जब वो दोबारा मेरी छाती में दुबक कर लेटी — उसकी आँखें नम थीं। मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा, और उसके कान के पास फुसफुसाया — “कल से तू फिर बहन बन जाएगी?”

उसने कुछ नहीं कहा — बस होंठ मेरे गले पर टिकाए, गहरी साँस ली… और आँखें बंद कर लीं।

सुबह उजाला हुआ तो मैं जागा — वो अब भी मेरी बाँहों में थी। उसकी सलवार अब भी आधी खिसकी हुई थी, मेरी जांघ अब भी उसकी चूत से चिपकी हुई थी।

उसने चेहरा मेरी छाती में दबाया… और धीरे से कहा — “अब से सब वैसे ही रहेगा... जैसे कुछ हुआ ही नहीं।”

मैंने कुछ नहीं कहा — बस उसकी गांड को एक बार हल्के से दबाया… और मुस्कुरा दिया।

फिर वो उठी, कपड़े ठीक किए, और टेंट से ऐसे निकली — जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

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