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मेरा नाम अंश है। मैं 20 साल का हूँ, कॉलेज में पढ़ता हूँ और हॉस्टल से कुछ दिनों के लिए घर आया था। उस दिन भैया किसी मीटिंग के लिए बाहर गए हुए थे और घर पर सिर्फ मैं और भाभी थे।
भाभी हमेशा से ही थोड़ी खुली और बेपरवाह थीं, लेकिन उस दिन जो हुआ, वो सिर्फ फैंटेसी नहीं, हकीकत थी – और आज भी मेरी नसों में आग बनकर बहती है।
मैं हॉल में बैठा था, और भाभी नहाने गई थीं। उनका दरवाज़ा बंद होते ही मेरा ध्यान उसी ओर चला गया। मैं हर उस आवाज़ को सुनने लगा – पानी की बूँदों की, उनके पैरों की, और वो धीमी-धीमी गुनगुनाहट।
करीब 15 मिनट बाद दरवाज़ा खुला — और भाभी बाहर निकलीं। सिर्फ एक सफेद टॉवल में। गीले बाल, चेहरे पर पानी की बूँदें, और बदन से चिपकी हुई टॉवल जो उनकी जाँघों से लिपटी हुई थी।
मैं बस देखता रह गया। उनका एक हाथ टॉवल पकड़े हुए था, दूसरा हाथ बालों में। उन्होंने मेरी नज़रें देखीं, और मुस्कराईं – “क्या हुआ अंश? आजकल ज़्यादा देखने लग गया है।”
मैं हड़बड़ा गया, लेकिन उन्होंने पास आकर कहा – “कभी-कभी नज़रों से ज़्यादा इज़ाज़त की ज़रूरत नहीं होती।”
उनका बदन मेरे पास था… टॉवल का एक सिरा ढीला हो रहा था… और उनकी गर्दन से नीचे टपकती बूँदें मेरे होंठ तक लुभा रही थीं।
“छू के देखेगा नहीं?” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा।
मैंने धीरे से हाथ बढ़ाया… टॉवल के अंदर मेरी उँगलियाँ गईं… उनकी गीली कमर से नीचे फिसलीं… और पहली बार मेरे हाथों ने उनकी नंगी गांड को महसूस किया – मुलायम, गर्म, भीगी हुई।
भाभी ने आँखें बंद कीं और सिसकते हुए कहा – “थोड़ा और नीचे जा अंश…”
मैं अब उनके घुटनों के पास बैठा था, और मेरी उँगलियाँ उनकी जाँघों के बीच पहुँच चुकी थीं। वहाँ गरमाहट थी, नमी थी… और एक धीमी धड़कन थी — उनकी गीली चूत।
मैंने बिना कुछ बोले टॉवल को नीचे गिरा दिया। वो अब बिल्कुल नंगी थीं, मेरे सामने, खुले बदन के साथ… और उनकी चूत हल्के बालों से ढकी थी, गुलाबी और भीगी हुई।
मैंने अपना मुँह आगे बढ़ाया, और जीभ उनकी चूत के होठों पर फेरी… “आह…” उनकी उँगलियाँ मेरे बालों में फँस गईं, और उन्होंने अपनी टाँगें मेरी पीठ के चारों ओर कस दीं।
मैंने चाटना शुरू किया – ऊपर से नीचे, होठों के बीच तक, हर रस को चूसते हुए। उनकी सिसकारियाँ तेज़ होती जा रही थीं – “और अंदर अंश… और…”
अब उन्होंने मुझे खींच कर ऊपर लिया, और मेरी पैंट खोल दी। मेरा लंड पूरी तरह खड़ा था। उन्होंने उसे अपने हाथ में लिया, और हल्के से सहलाया – “तेरा भीगना अब मुझे चाहिए…”
मैंने उन्हें पकड़ कर दीवार से लगाया, और धीरे से अपनी लंड उनकी चूत पर रखा। अंदर जाने में थोड़ी रुकावट थी, tight थी वो, लेकिन बहुत गर्म और रस से भरी।
मैंने धीरे-धीरे ठोकरें दीं। हर बार जब मैं अंदर जाता, उनकी आँखें बंद हो जातीं और होंठों से “आह…” निकलता। उनकी छातियाँ कांप रही थीं, निपल्स सख्त थे और मैंने उन्हें चूसते हुए अपनी रफ्तार बढ़ा दी।
अब मेरा लंड पूरी तरह उनकी चूत में खो गया था, और हम दोनों एक साथ थरथरा रहे थे। भाभी की चूत हर ठोकर पर और गीली होती जा रही थी, और मेरी रफ्तार अब रुक नहीं रही थी।
“बस… और थोड़ी देर… निकालना नहीं अंश…” वो कराहते हुए बोलीं। लेकिन मैं और नहीं रोक पाया…
मैंने अपना सारा लोड उनकी अंदर ही छोड़ दिया… गर्म, गाढ़ा, और पूरा भर दिया उन्हें।
वो मुझे अपनी बाँहों में समेट कर बोलीं – “अब जब भी भैया बाहर हों… तुझे सिर्फ मुझे भिगोना है।”
मेरी भाभी अब मुझे कभी मना नहीं करती, और मैं भी अब चुप-चुप के नहीं देखता जब मन होता है सीधे भाभी को बोल देता हूं.. Dosto agr aapke paas bhi hai esi hi koi khanai ya secret chudai ke kisse to hme secretbox@chutras.com par mail kren...