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दोस्तो, मेरा नाम सनी सक्सेना है — और आज मैं लेकर आया हूँ एक ऐसी सच्ची कहानी जो मेरी अपनी है। इसे पढ़कर शायद तुम समझ पाओगे कि लंड और चूत से ऊपर कोई रिश्ता नहीं होता। ये कोई फिल्मी किस्सा नहीं… ये वो चुदाई है जिसे सुनकर लड़कियों की चूत भीग जाएगी, और लड़कों का लंड बिना हाथ लगाए बाहर आ जाएगा।
रिया मेरी चचेरी बहन है — बुआ की बेटी। रिश्ते में दूर, लेकिन बचपन साथ गुज़रा है। वो वही लड़की थी जो कभी मेरी किताबें चुराकर हँसती थी, कभी झगड़ती थी… और कई बार एक ही बिस्तर में, रजाई में पैर लड़ाकर सोई थी।
अब वो बड़ी हो चुकी है — दिल्ली में पढ़ाई कर रही है, अकेली रहती है फ्लैट में। कभी-कभी इंस्टा पर तस्वीरें देखता था तो लगता, जैसे अब वो लड़की नहीं, एक पूरी औरत बन चुकी है — और उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जो रुकने नहीं देता था।
कुछ महीने पहले उसने मुझसे ₹15,000 माँगे थे — कहा, "भाई, हॉस्टल का किराया देना है, खाने के भी पैसे नहीं हैं।" मैंने एक बार भी नहीं पूछा क्यों, बस भेज दिए — क्योंकि रिश्ता था… और शायद कहीं न कहीं, उसके लिए कुछ और भी था जो मैं खुद से छिपा रहा था।
लेकिन अब दो महीने बीत गए थे। ना पैसा लौटा, ना कॉल, ना मैसेज। दिल्ली में था एक रात — और अचानक ही सोचा, चलो रिया से मिल लिया जाए…
रात के 9 बजे मैं उसके फ्लैट के दरवाज़े पर खड़ा था — मन में सवाल भी थे, और कहीं न कहीं… एक वासना भी थी, जिसे आज तक मैंने "रिश्ता" कहकर चुप करा रखा था।
रिया ने दरवाज़ा खोला। बाल खुले थे, आँखों में थोड़ी सी हड़बड़ाहट और होंठ पर आधी सी मुस्कान। ढीली सी टीशर्ट, जिसमें से ब्रा की कोई लाइन नहीं दिख रही थी… और नीची शॉर्ट्स, जो उसके चिकने जांघों से चिपकी हुई थी।
“अरे भाई… अचानक?” — उसने आवाज़ में मासूमियत घोली।
“रिया, तू पैसे तो भूल ही गई लगती है…” — मैंने अंदर आते ही कहा। वो थोड़ी देर चुप रही, फिर दरवाज़ा बंद करते हुए बोली — “भाई… अभी नहीं हैं पैसे। लेकिन… बैठो न, बात करते हैं।”
कमरा हल्की पीली रौशनी में डूबा था। वो सीधे किचन गई और बोली — “चाय बनाऊं?” मैंने सख्त आवाज़ में कहा — “₹15,000 चाय में नहीं भुलाए जाते रिया। सीधा बताओ — क्या चल रहा है?”
रिया चुपचाप आई, मेरे सामने बैठी, और धीमे से बोली — “सच बोलूं तो… मैंने पैसे अपनी दोस्त के साथ मस्ती में उड़ा दिए। शॉपिंग, पार्टी… पता था तू गुस्सा करेगा, इसलिए बताने से डर लगी।”
“तूने मुझसे झूठ बोला?” — मैंने गुस्से से पूछा। वो हल्का मुस्कराई — “झूठ नहीं… बस सच्चाई रोकी थी।”
मैं कुछ बोलता इससे पहले ही उसने अपने शॉर्ट्स की डोरी ढीली कर दी… धीरे-धीरे उसकी उंगलियाँ कपड़े को नीचे सरकाती रहीं — और मैं जैसे साँस लेना भूल गया।
उसके पैरों से शॉर्ट्स फर्श पर गिर चुके थे। नीचे सिर्फ एक हल्की गुलाबी पैंटी थी — जो नमी से चिपकी हुई थी, जिससे उसकी चिकनी और भरी हुई जाँघें और उभरी हुई चूत साफ़ झलक रही थी।
उसका बदन — गोरा, नर्म, और इतना inviting था कि मेरी आँखें खुद-ब-खुद उसके curves पर फिसल रही थीं। कमर पतली, लेकिन गांड और जाँघें भरी हुई — ठीक वैसी, जैसी मर्द की कल्पना में होती है। उसकी टी-शर्ट से दो चूचियाँ उभरी हुई थीं — जिनके ऊपर कोई ब्रा नहीं थी… और वो थोड़ी-सी भी हरकत में हिल रही थीं — जैसे मुझे ललकार रही हों।
“तू वसूली के लिए आया है न?” — उसने आँखों में सीधा देख कर कहा। “तो ले ले — जो सबसे कीमती है, वो आज तेरे सामने है।”
उसकी आँखों में न शर्म थी, न डर… बस एक ठंडा और तेज़ आत्मविश्वास था — जो मेरी रूह तक में घुस गया।
मैं सन्न था। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था… मन के अंदर तूफान चल रहा था — *“रिया… मेरी कज़िन… वो लड़की जो कभी मेरे साथ सोती थी, लड़ती थी… आज अपनी चूत मेरे सामने पेश कर रही है…”*
मैंने काँपती आवाज़ में कहा — “रिया… ये गलत है… हम रिश्ते में…”
वो मुस्कराई… और एक कदम और करीब आई — अब उसकी पैंटी मेरे लंड से सिर्फ कुछ इंच दूर थी… और वो बोली — “रिश्ता वही रहता है जहाँ वासना नहीं होती… और अब मेरी चूत सिर्फ रिश्ते नहीं, तुझसे लंड माँग रही है।”
वो आगे बढ़ी, और मेरी पैंट पर हाथ रखकर बोली — “गलत तो मैंने किया था… पैसे लेके भी तूने भरोसा किया। अब तेरे भरोसे का हिसाब भी देना है और उधार का भी…”
उसने मेरी बेल्ट खोली, लंड बाहर निकाला और बोली — “तू सोचता रह, मैं चूसने लगती हूँ… फिर decide करना कि रिश्ता बचाना है या लंड…”
मेरे अंदर की लड़ाई ख़त्म हो चुकी थी। रिया अब मेरे लंड को मुँह में भर चुकी थी — आँखें बंद, जीभ active, और गीली पैंटी से उसकी चूत की महक पूरे कमरे में फैल चुकी थी।
रिया मेरे लंड को पकड़ चुकी थी, लेकिन मैं अब भी वहीं बैठा था — स्थिर, सन्न। सामने मेरी step cousin, अधनंगी खड़ी थी, और मैं… रिश्ते, मर्यादा, और वासना के बीच पिस रहा था।
मन के अंदर कई आवाज़ें चल रही थीं — *“ये गलत है… रिश्तेदारी है… विश्वास है…”* लेकिन उसी के बीच एक और आवाज़ आई — *“जब दोनों राज़ी हैं, तो कौन सा कानून टूट रहा है?”*
मेरी नज़र रिया की आँखों में गई — कोई डर नहीं था उसमें। वो खुद को मेरे सामने पेश कर चुकी थी — उसकी आँखों में आग थी, ललकार थी।
मैंने सोचा — *“मैं क्यों पीछे हट रहा हूँ? उसने पैसे मेरी मर्ज़ी से लिए… और अब वो जिस्म से चुकाना चाहती है… क्यों न मैं भी उसी मर्ज़ी से उसे लूँ?”*
दिल की धड़कन तेज़ थी। लंड अब पूरी तरह खड़ा हो चुका था — जैसे खुद फैसला कर चुका हो।
*“रिश्ते तो वैसे भी अब नाम के ही बचे हैं… और वासना कभी खून या सरनेम नहीं देखती… वो बस चूत को लंड और लंड को चूत में देखती है।”*
रिया ने अपनी पैंटी सरकाई… और मेरी आँखों के सामने उसकी गीली, मुलायम चूत चमकने लगी — गुलाबी, नम, और भीतर से किसी गहरी नदी की तरह गर्म।
उसने खुद अपनी टाँगें फैलाईं और बोली — “अब मत सोच… आज तेरे लंड को जो चाहिए, वो सामने है।”
मैं उठा… लेकिन इस बार सिर्फ बदन नहीं — मेरे अंदर का इंसान भी कुछ हार चुका था। उसकी चूत से उठती वो गंध — गीली चमड़ी, पसीने और मादा रस की मिली-जुली सुगंध — मेरे नथुनों से होती हुई सीधे मेरे दिमाग तक घुस गई। जैसे कोई invisible हाथ मुझे पकड़कर खींच रहा हो… उसकी चूत के अंदर।
मैं उस हिस्से को देख रहा था — वो हिस्सा, जो कभी मेरी बहन कहलाने वाली लड़की का था। एक ऐसा हिस्सा जिसे मैंने कभी देखने की सोच तक नहीं की थी… और आज वो मेरी आँखों के सामने अपनी सबसे जादुई, सबसे कामुक शक्ल में थिरक रहा था।
उसकी चूत… एक बुलावा बन चुकी थी। रिश्ते, नैतिकता, शर्म — सब उस भीनी-भीनी चूत की महक के सामने बेकार लग रहे थे।
मैंने उसकी कमर पकड़ी… और पहली बार… रिश्तों के सारे पर्दे हटा दिए। अब न भाई था, न बहन… बस एक मर्द था, और उसके सामने वो चूत थी… जो अब उसकी बन चुकी थी।
मैंने लंड उसकी चूत में घुसाया — धीरे… लेकिन इतनी गहराई से, जैसे मैं उसी के अंदर खो जाना चाहता हूँ।
“आह्ह्ह... भाई... हाँ... और अंदर डालो...” — रिया की आवाज़ काँप रही थी, आँखें बंद थीं, होंठ दाँतों में दबे हुए। मैंने कमर कस के पकड़ी… और एक झटके में लंड पूरा जड़ तक ठोक दिया। उसकी चीख कमरे में गूंज गई — “भोसड़ी के! फाड़ दिया साले! हाँ… ऐसे ही!”
लेकिन असली पागलपन तब शुरू हुआ… जब मैंने उसे डॉगी पोज में झुका दिया।
जैसे ही उसके नितम्ब मेरी आँखों के सामने आए — मैं कुछ पल वहीं थम गया। गोल, चिकने, दूध जैसे सफेद नितम्ब — जैसे गर्म रोटियाँ तवे पर चिपकी हों… बीच में हल्की सी दरार… और उस दरार में एक ऐसी गर्मी की लकीर, जिसे देख कर कोई भी शरीफ मर्द जानवर बन जाए।
मैंने धीरे से उँगलियों से उसके नितम्बों को फैलाया — और उस बीच की गर्म हवा मेरी हथेली तक पहुँच गई। वो महक — वो औरत की खाल, पसीने और चूत के गीलेपन की मिली-जुली ख़ास खुशबू… जैसे मेरी वासना को नाम मिल गया हो।
उसके नितम्ब इतने मुलायम थे कि छूते ही ऐसा लगा जैसे हथेलियाँ किसी गुनगुने बादल पर घूम रही हों। वो हल्का-सा काँपी — और मैं उस दरार को देखता ही रह गया… वो चूत की बुलाहट थी… बिना शब्दों के, सिर्फ़ गंध और गर्मी से बुलाई गई।
अब मैं बस लंड की मशीन बन चुका था। कमर कसकर पकड़ी, और पूरे जोश में लंड अंदर फेंका — धप्प! धप्प! धप्प! — हर झटका जैसे उसकी गांड के दोनों गोलों से आवाज़ निकालता।
मेरी आँखें अब उसकी पीठ से लेकर नितम्बों की हर हरकत पर टिकी थीं। वो हिलती, कांपती, चीखती… लेकिन पीछे धकेलकर लंड और गहराई में बुलाती।
हर बार जब मैं अंदर जाता, उसका बदन एक हल्की सी लहर छोड़ता — और वो खुद अपनी चूत को और चौड़ा करने की कोशिश करती — जैसे वो चाहती थी कि मैं उसके अंदर खो जाऊँ, पूरी तरह।
“आह आह... फाड़ मेरी चूत... ले मेरी गांड के नीचे से सबकुछ… तू ही मेरा सूद है साले!” — रिया अब खुद गालियाँ बक रही थी। उसकी चूत से चिकचिक आवाज़ आ रही थी — जैसे कोई रस की बोतल फूट रही हो।
उसका बदन कांप रहा था, और वो दीवार की ओर टेकी हुई, पीछे से पूरे जोश में चोदाई खा रही थी। मैंने उसे खींच के पास किया — उसकी गर्दन पकड़कर मुँह चूस लिया… और लंड बिना निकाले उसकी चूत के अंदर ही पूरे धक्के मारने लगा।
“हाँ! भाई! मेरी चूत से वसूली कर ले… जितना interest चाहिए, अंदर ही फोड़ दे…” — उसने सांस रोकते हुए बोला।
मैं अब पसीने से भीगा हुआ था — लेकिन रुक नहीं रहा था। उसकी चूत से पानी बह रहा था, और पूरा बिस्तर भीग चुका था।
और फिर — एक आखिरी झटका… और मेरा लंड उसके अंदर ही गरम लावा छोड़ चुका था। इतनी ज़ोर से भरा कि रिया की पूरी देह काँप गई… और वो बेदम होकर बिस्तर पर ढेर हो गई।
उसकी आँखें नम थीं, लेकिन होंठों पर एक ठंडी सी, सुकून वाली मुस्कान थी — “अब मेरी चूत तेरा कर्ज़दार नहीं रही…”
मैं चुप था। वो मेरी छाती पर सिर रखकर धीरे से फुसफुसाई — “लेकिन अभी पूरी तरह चुकाया नहीं मैंने… तू समझा ना? अभी तो सिर्फ रसीद कटी है…”
हम कुछ देर यूँ ही लेटे रहे। फिर रिया उठी — बिना कपड़े पहने, बाल खुले… किचन की तरफ गई, और बोली — “चाय बनाऊं? या पहले कुछ मीठा हो जाए?” — उसकी आँखों में शरारत थी।
मैं हँस पड़ा — “पहले चाय… फिर तेरी चूत दोबारा।”
कुछ ही देर में हम दोनों बैठकर बिस्किट के साथ चाय पी रहे थे, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। रिया मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली — “तू जब भर रहा था ना… मेरी पूरी रूह काँप रही थी। पहली बार ऐसा किसी ने किया।”
मैंने पूछा — “तेरा कोई बॉयफ्रेंड है?”
रिया मुस्कराई — “था… लेकिन जब उसने पहली बार पूछा कि तेरी virginity बची है या नहीं… तब से दूरी बन गई। वो सिर्फ छूना चाहता था, तूने मुझे तोड़ दिया। फर्क समझ?”
फिर वो थोड़ा करीब आई, मेरी गोद में बैठते हुए बोली — “और सुन… जब चोदने की बात आती है ना… तो कोई बाहर वाला क्यों चोदे मेरी चूत को? क्यों किसी और को फ्री में दूँ?”
उसने मेरी आँखों में देखकर कहा — “पैसे भी तू देता है… और चोदने के लिए लंड भी तो तेरे पास है न.. फिर और क्या चाहिए मुझे?"
मैं चुप था… लेकिन अंदर से पिघल रहा था।
रिया ने मेरी गर्दन में बाँहें डालीं और फुसफुसाई — “और भाई… तेरे लिए तो ये चूत फ्री में भी हाज़िर है… आख़िर प्यार भी तो है मुझमें, थोड़ा बहुत… समझा न?”
मैंने उसके होंठों को चूमा — धीरे, लेकिन उस एहसास के साथ जो दिल में बरसों से दबा था। फिर उसकी आँखों में देखते हुए बोला — “एक बार बहन समझकर दूर रह गया था… अब जब तूने खुद अपनी चूत दी है, तो हर हफ्ते डबल प्यार मिलेगा — एक उस रिश्ते के लिए, और एक तेरी तड़पती चूत के लिए।”
...लेकिन असली खेल तो चाय के बाद शुरू हुआ — जहाँ shaving से लेकर गांड तक सब कुछ हुआ। क्या-क्या किया हमने, वो जानने के लिए पढ़ो अगला पार्ट।
👉 Part 2 – Cousin बहन की चुदाई: रिश्ता नहीं, चूत का लंड से प्यार (आगे की कहानी)
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